फिसलता वक्त

फिसलता वक्त


गलत कहते हैं लोग, वक्त कहां फिसलता है
फिसलते हैं हम लोग, वक्त की गति तो निर्बाध है
वो तो बहता पानी है, एक बार छू लो निकल जाता है
बस इंसान ही ठगा सा खड़ा रह जाता है।

दिन रात सुबह शाम हफ्ते महीने साल गुजरते जाते
एक एक पल मंजर बदलता जाता है
और हम दौड़ते दौड़ते, हांफने लगते हैं
और फिर थक कर रुक जाते हैं, पर वो नहीं रुकता।

कभी कभी हम पीछे मुड़ के देखने में खो जाते है
यादों के समंदर में गहरे तक गोते लगाते हैं
जब लौट कर वर्तमान के धरातल पर पांव रखते है
मालूम चलता है पैरों के नीचे से वक्त की रेत कब की खिसक चुकी।

गलत कहते हैं लोग, वक्त कहां फिसलता है
फिसलते हैं हम लोग, वक्त को पकड़ने की अंधी दौड़ में।।

आभार – नवीन पहल – ३१.१०.२०२३ 🎉🌹💐👍

# प्रतियोगिता हेतु

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6 Comments

Babita patel

02-Nov-2023 08:12 AM

Amazing

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RISHITA

01-Nov-2023 05:01 PM

V nice

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madhura

01-Nov-2023 04:05 PM

V nice

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